श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिया था गीता का उपदेश

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिया था गीता का उपदेश:

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हिन्दू पौराणिक कथाओं में गहराई से जुड़ा
कुरुक्षेत्र भारत के हरियाणा राज्य का एक प्राचीन शहर है। इन दिनों यहां
अन्तर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2019 का आयोजन किया जा रहा है। कुरुक्षेत्र
देखने वालों के लिए यह एक अतिरिक्त आकर्षण है। इस समय कुरुक्षेत्र को देखने
वालों का अपार जन समूह उमड़ रहा है। गीता जयन्ति समारोह में दीप दान का
भव्य कार्यक्रम दर्शनीय होता है। जलते हुए दीपक जब सरोवर में तैरते हैं और
उनका प्रतिबिम्ब सरोवर में नजर आता है तो लगता है जैसे दीपक डुबकी लगा रहे
हों।

         

कुरूक्षेत्र की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत का महत्व इसी से लगाया जा
सकता है कि कौरवों एवं पाण्डवों के मध्य कुरूक्षेत्र का ऐतिहासिक युद्ध
लड़ा गया जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देकर कर्म दर्शन का
महत्व समझाया था।  मनुस्मृति की रचना यहीं पर की थी। इस स्थान की प्राचीनता
का बोध इसी से होता है कि ऋग्वेद एवं यजुर्वेद में अनेक स्थानों पर इस
स्थल का वर्णन किया गया है। साथ ही पुराणों, स्मृतियों एवं वेद व्यास
द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य में भी इस स्थल का वर्णन आया है। हिन्दुओं का
यह प्रमुख तीर्थ स्थल 1530 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसमें
कुरूक्षेत्र के साथ-साथ कैथल, करनाल, पानीपत एवं जिन्द क्षेत्र शामिल हैं।
बताया जाता है कि कौरवों एवं पाण्डवों के कुरू ने यहां तालाब खुदवाया था
और उसी के नाम पर इस क्षेत्र का नाम कुरूक्षेत्र रखा गया। यहां अनेक
दर्शनीय स्थल होने से कुरूक्षेत्र पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।
ज्योतिसर तीर्थ

ज्योतिसर कुरूक्षेत्र-


पहोवा मार्ग पर थानेसर से 5 कि.मी. पश्चिम में स्थित है। बताया जाता है कि
ज्योतिसर में ही भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। यहां
स्थानानेश्वर नामक शिव मंदिर का भी अपना महत्व है जहां कृष्ण ने अर्जुन के
साथ शिव की उपासना कर युद्ध में विजय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह
शिव का मंदिर कश्मीर के शासक ने बनवाया था। इस मंदिर की दीवार से लगा हुआ
गुरूद्धारा भी दर्शनीय है। इस स्थान का पता सर्वप्रथम 9 वीं शताब्दी में
आदि शंकाचार्य ने लगाया था जब वह हिमालय की यात्रा पर थे। इस जगह पर एक
मूर्ति बनी है जिसमें श्रीकृण रथ पर सवार होकर सारथी के स्थान पर खड़े हैं
और अर्जुन को गीता का उपदेश दे रह हैं एवं अर्जुन हाथ जोड़े हुए
विनम्रतापूर्वक खड़े हुए हैं। इस मूर्ति को 1967 में कांची कामा कोटि पीठ
के शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया था। यहां सायंकाल ध्वनि एवं प्रकाश का
कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
बाण गंगा

महाभारत कालीन घटनाओं से जुड़ा बाण गंगा कुरूक्षेत्र जिले का महत्वपूर्ण
स्थान है। यह स्थान कुरूक्षेत्र से 6 कि.मी. दूर पहेवा जाने वाले मार्ग पर
ज्योतिसर से कुछ पहले ही मुख्य मार्ग से जुड़ा हुआ एक मार्ग दयालपुरा गांव
जाता है, में स्थित है। बताया जाता है कि अर्जुन के रथ के घोड़े लगातार
भागने व घायल होने के कारण थक गये थे। जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह बात
बताई तब अर्जुन ने इसी स्थान पर जमीन पर बाण चलाकर गंगा को प्रकट किया था
और श्रीकृष्ण ने घोड़ों को पानी पिलाया और नहलाया था। एक अन्य कथानक के
अनुसार शर-शैय्या पर लेटे भीष्म की प्यास बुझाने के लिए अर्जुन ने बाण से
पृथ्वी फोड़कर पानी निकाला था और भीष्म की प्यास बुझाई थी। जिस स्थान पर
पानी निकला था वहां आज एक कुआं बना दिया गया है। यहां भक्तों द्वारा मिट्टी
के घोड़े अर्पित किये जाते हैं। यहीं पर बजरंग बली की विशाल प्रतिमा भी
बनी हुई है। साथ ही शर-शैय्या पर लेटे हुए भीष्मपितामह की प्रतिमा भी बनी
है।
श्रीकृष्ण संग्रहालय

भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों को जानना है तो कुरूक्षेत्र में बना
श्रीकृष्ण संग्रहालय अवश्य देखिए। इसका निर्माण कुरूक्षेत्र विकास
प्राधिकरण द्वारा 1987 ई. में किया गया था। इस भवन के साथ दो अन्य भवन भी
हैं जिन्हें मल्टीमीडिया महाभारत और गीता गैलरी के नाम से जाना जाता है।
जिसकी स्थापना 2012 ई. में की गई थी। यहां संग्रहालय में महाभारत काल के
दुर्लभ पौधे भी लगाये गये हैं। वनस्पति शास्त्र के ज्ञाताओं एवं प्रेमियों
के लिए यह वनस्पति वृक्ष विशेष महत्व के हैं। यहां परिजात, खेजड़ी, कदम्ब,
रूद्राक्ष, सेव, चम्पा, कनक, तुलसी आदि के सैकड़ों पौधे मिलते हैं।
श्रीकृष्ण संग्रहालय को तीन खण्डों एवं नौ दीर्घाओं में बांटा गया है।वर्ष
1991 ई. में संग्रहालय में प्रथम खण्ड में स्थानन्तरित किया गया तथा वर्ष
1995 ई. में दूसरे खण्ड तथा 2012 ई. में तीसरा खण्ड जोड़ा गया। संग्रहालय
में प्रवेश करते ही एक मानचित्र पर 48 कोस कुरूक्षेत्र के दर्शन होते हैं।
संग्रहालय में विभिन्न कालों एवं शैलियों में निर्मित धातु, काष्ठ एवं हाथी
दांत पर उत्कीर्ण कृष्ण की लीलाएं, प्रागेतिहासिक काल की पुरातत्व
सामग्री, लघुचित्र, ताड़पत्रों पर बने चित्र, भगवत गीता, महाभारत एवं भागवत
की पाण्डुलिपियां, आन्ध्र प्रदेश की चर्म कठपुतलियां, शर-शैय्या पर लेटे
भीष्मपितामह एवं वीर अभिमन्यु के वध की झांकी, कागज पर बनी मधुबनी चित्रकला
में श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर कंस वध तक प्रमुख प्रसंगों का चित्रण देखने
को मिलता हैं। इसके साथ ही श्रीकृष्ण कथा पर आधारित मनोरम झांकियों में
नवजात कृष्ण को यमुना पार ले जाते हुए वासुदेव, सखाओं के संग माखन चोरी
करते हुए बालकृष्ण, बानासुर का वध करते हुए कृष्ण, गोवर्धन पर्वत को धारण
करते हुए, कालिया नाग का मर्दन करते हुए, रासलीला, राधा-कृष्ण मिलन, अर्जुन
को संदेश देने की सुन्दर झांकियां बनाई गई हैं। एक झांकी में भीष्म को
प्रतिज्ञा लेते हुए दर्शाया गया है। चक्रव्यूह की रचना तथा पाण्डव स्वर्ग
की ओर प्रस्थान करते हुए दिखाये गये हैं। संग्रहालय में गीता के उपदेश पर
11 मिनिट का एक शो दिखाया जाता है। यह संग्रहालय देखकर दर्शक उस लोक की
कल्पना होने लगती है जिसमें कृष्ण जन्म थे और उन्होंने विविध लीलाएं की थी।
कृष्ण लोक का यह मायावी संसार आपको वर्षों तक याद रहेगा।
सन्निहित सरोवर

श्रीकृष्ण संग्रहालय के समीप ही बना है सन्निहित सरोवर जिसे सात पावन
सरस्वती का संगम माना जाता है। यह सरोवर 1500 फीट लम्बा एवं 450 फीट चौड़ा
है। महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों ने सभी दिवंगतों की मुक्ति के लिए यहां
पिण्डदान किये थे। यहां विशेष कर अमावस्या और सूर्यग्रहण के दौरान
श्रद्धालु बड़ी संख्या में स्नान करते हैं। कहा जाता है कि इन दिनों में
यहां स्नान करने पर उतना पुण्य मिलता है जितना कि अश्वमेघ यज्ञ करने पर
प्राप्त होता है। स्नान, ध्यान एवं प्रार्थना करने से दिवंगतों की आत्मा को
शांति मिलती है। यहां स्नान करने वालों को भगवान विष्णु आशीर्वाद प्रदान
करते हैं।भद्रकाली मंदिरकुरूक्षेत्र में स्थित भद्रकाली मंदिर प्राचीन
शक्तिपीठों में से एक है। यहां सति का दांये घुटने का भाग गिरा था जिससे
यहां शक्तिपीठ स्थापित किया गया। महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन ने यहां
भद्रकाली की पूजा की थी। मंदिर में माँ भद्रकाली की शांत भाव वाली सुन्दर
प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के बाहर एक तालाब बनाया गया है, जिसके एक
किनारे पर तक्षेश्वर मंदिर स्थापित है।सरोवर के समीप अनेक देवालय श्रद्धा
के केन्द्र हैं। प्रमुख देवालय लक्ष्मी-नारायण के साथ-साथ हनुमान, विष्णु,
ध्रुव, भगत, देवी दुर्गा आदि के मंदिर हैं। यहां सरोवर के निकट हरगोविन्द
सिंह को समर्पित एक गुरूद्वारा भी सिक्खों सहित सभी की आस्था का केन्द्र
है। ब्रह्म सरोवरकुरूक्षेत्र में स्थित ब्रह्म सरोवर को सबसे पवित्र माना
जाता है। महाभारत एवं वामन पुराण में इस सरोवर का उल्लेख मिलता है जहां इसे
परमपिता ब्र्रह्म से जोड़ा गया है। यहां अर्जुन को सात घोड़ों के रथ पर
सवार प्रतिमा बनाई गई है। सरोवर की विशालता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता
है कि यह सरोवर 3600 फीट लम्बे एवं 5500 फीट चौड़े क्षेत्रफल में बना हुआ
है। यहां का जलकुण्ड 1800 फीट लम्बा एवं 1400 फीट चौड़ा है। महिलाओं के लिए
विशेष व्यवस्था की गई है। इस सरोवर के मध्य एक भव्य एवं सुन्दर शिव मंदिर
बना है, जहां तक पहुँचने के लिए एक पुल बनाया गया है। सर्दी के मौसम में इस
सरोवर में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी भी देखने को मिलते हैं।

        

यहां कुरुक्षेत्र पैनोरमा एवं विज्ञान सेंटर भी दर्शनीय है।कुरुक्षेत्र का
नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ में है जहां से बस या टैक्सी से पहूंचा जा सकता
है। रेल से जाने पर कुरुक्षेत्र में रेलवे स्टेशन है। देश के प्रमुख नगरों
से बस सेवा से जुड़ा है।

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